नई दिल्ली
मॉनसून भारत पहुंच गया है। 1 जून को उसने केरल के तटों को छू लिया। यह देश के किसानों और खासकर सरकार के लिए बेहद राहत की खबर है। कोरोना वायरस (Coronavirus) ने देश की अर्थव्यवस्था को जो जख्म दिए हैं, उन्हें भरने में मॉनसून किसी मलहम का काम करेगा। बंपर फसल उत्पादन के लिए मॉनसून कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि देश की आधे से ज्यादा खेतिहर जमीन पर यह बारिश कराता है। अर्थव्यवस्था को इससे कितना फायदा पहुंचेगा, ये तो बाद में पता चलेगा मगर असर जरूर होगा। क्योंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। इस वक्त मॉनसून का महत्व और ज्यादाऐसे वक्त में जब देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है, मॉनसून की वैल्यू और बढ़ जाती है। लाखों लोगों की रोटी-रोटी का बंदोबस्त कोरोना लॉकडाउन की वजह से उजड़ गया। चार दशक से भी ज्यादा वक्त में पहली बार देश फुल-ईयर GDP ड्रॉप की तरफ बढ़ रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के योगदान को देखते हुए कृषि सेक्टर बेहद अहम है। और कृषि क्षेत्र के लिए मॉनसून अमृत की तरह है क्योंकि इससे खेत सीधे सींच जाते हैं और रिजर्वायर भी भरे रहते हैं। भले ही इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का रुख पूरी तरह से न बदले, खाद्यान्न कीमतों पर इसका सकरात्मक असर होगा। मॉनसून सही तो लहलहाती है फसलमिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज (पृथ्वी विज्ञान) के सचिव माधवन नायर राजीवन ने सोमवार को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में बड़ी आशाजनक बात कही। उन्होंने कहा कि जुलाई-सितंबर के बीच बारिश के मौसम में 102 फीसद बारिश होगी। अगर मॉनसून ने ठीक समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में बारिश की तो चावल, कपास और मक्के की फसलें लहलहा उठेंगी। अधिकतर फसलें सरप्लस होंगी जिससे दाम नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी। मॉनसून पर निर्भर है फसलों की बुआई देश में होने वाली 60 से 90 फीसदी बारिश मॉनसून के वक्त होती है। तमिलनाडु इसमें अपवाद है जहां बारिश के मौसम में साल की सिर्फ 35% बारिश ही होती है। किसान मॉनसून का इंतजार करते हैं ताकि चावल, मक्का, दालें, कपास और गन्ने जैसी फसलें बो सकें। बारिश आने में देरी या कमी का असर बुआई पर पड़ेगा और फसल उत्पादन पर असर पड़ेगा। इसलिए मॉनसून का सही समय पर, सही मात्रा में बारिश करना जरूरी है। सटीक रही मौसम विभाग की भविष्यवाणीदक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल ठीक उसी दिन पहुंचा जिस दिन इसके टकराने की भविष्यवाणी की गई थी। 2019 में, मानसून ने 8 जून को केरल में दस्तक दी थी। अरब सागर के ऊपर चक्रवात ‘निसर्ग’ के बनने से केरल में मॉनसून की शुरुआत के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन राजीवन ने 15 अप्रैल को अपने पूर्वानुमान में कहा था कि इस वर्ष मानसून की बारिश सामान्य रूप से लंबी अवधि के औसत के 100 प्रतिशत सामान्य होने की संभावना है। इसमें 5 प्रतिशत इधर-उधर हो सकता है।
मॉनसून भारत पहुंच गया है। 1 जून को उसने केरल के तटों को छू लिया। यह देश के किसानों और खासकर सरकार के लिए बेहद राहत की खबर है। कोरोना वायरस (Coronavirus) ने देश की अर्थव्यवस्था को जो जख्म दिए हैं, उन्हें भरने में मॉनसून किसी मलहम का काम करेगा। बंपर फसल उत्पादन के लिए मॉनसून कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि देश की आधे से ज्यादा खेतिहर जमीन पर यह बारिश कराता है। अर्थव्यवस्था को इससे कितना फायदा पहुंचेगा, ये तो बाद में पता चलेगा मगर असर जरूर होगा। क्योंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। इस वक्त मॉनसून का महत्व और ज्यादाऐसे वक्त में जब देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है, मॉनसून की वैल्यू और बढ़ जाती है। लाखों लोगों की रोटी-रोटी का बंदोबस्त कोरोना लॉकडाउन की वजह से उजड़ गया। चार दशक से भी ज्यादा वक्त में पहली बार देश फुल-ईयर GDP ड्रॉप की तरफ बढ़ रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के योगदान को देखते हुए कृषि सेक्टर बेहद अहम है। और कृषि क्षेत्र के लिए मॉनसून अमृत की तरह है क्योंकि इससे खेत सीधे सींच जाते हैं और रिजर्वायर भी भरे रहते हैं। भले ही इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का रुख पूरी तरह से न बदले, खाद्यान्न कीमतों पर इसका सकरात्मक असर होगा। मॉनसून सही तो लहलहाती है फसलमिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज (पृथ्वी विज्ञान) के सचिव माधवन नायर राजीवन ने सोमवार को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में बड़ी आशाजनक बात कही। उन्होंने कहा कि जुलाई-सितंबर के बीच बारिश के मौसम में 102 फीसद बारिश होगी। अगर मॉनसून ने ठीक समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में बारिश की तो चावल, कपास और मक्के की फसलें लहलहा उठेंगी। अधिकतर फसलें सरप्लस होंगी जिससे दाम नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी। मॉनसून पर निर्भर है फसलों की बुआई देश में होने वाली 60 से 90 फीसदी बारिश मॉनसून के वक्त होती है। तमिलनाडु इसमें अपवाद है जहां बारिश के मौसम में साल की सिर्फ 35% बारिश ही होती है। किसान मॉनसून का इंतजार करते हैं ताकि चावल, मक्का, दालें, कपास और गन्ने जैसी फसलें बो सकें। बारिश आने में देरी या कमी का असर बुआई पर पड़ेगा और फसल उत्पादन पर असर पड़ेगा। इसलिए मॉनसून का सही समय पर, सही मात्रा में बारिश करना जरूरी है। सटीक रही मौसम विभाग की भविष्यवाणीदक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल ठीक उसी दिन पहुंचा जिस दिन इसके टकराने की भविष्यवाणी की गई थी। 2019 में, मानसून ने 8 जून को केरल में दस्तक दी थी। अरब सागर के ऊपर चक्रवात ‘निसर्ग’ के बनने से केरल में मॉनसून की शुरुआत के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन राजीवन ने 15 अप्रैल को अपने पूर्वानुमान में कहा था कि इस वर्ष मानसून की बारिश सामान्य रूप से लंबी अवधि के औसत के 100 प्रतिशत सामान्य होने की संभावना है। इसमें 5 प्रतिशत इधर-उधर हो सकता है।