मो​दीनोमिक्स पर क्यों सवाल उठा रहा है Moody’s?

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नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी की नवीनतम रेटिंग के बाद अब एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या Modinomics का जादू नहीं चल रहा है या यह खत्म हो रहा है। इस बारे में जहां कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि इससे ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है, वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह तो होना ही था। अभी तुरंत कोई फर्क नहीं पड़ेगा
देश के सबसे बड़े बैंक, एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष का कहना है कि Moody’s के इस डाउनग्रेडिंग से भारतीय रुपया के विनियम दर और India offshore bonds पर तुरंत कोई असर नहीं दिखने वाला है, उन्हें ऐसा नहीं लगता। उनका कहना है कि अभी अर्थव्यवस्था एक unprecedented दौर से गुजर रही है। जहां तक रेटिंग के डाउनग्रेड की बात है तो ऐसा पहले भी हो चुका है। लेकिन हमे सावधान रहना होगा और इस तरह की नीतियां बनानी होगी, जिससे विकास को तेज धक्का लगे। ऐसा तो होना ही था
मैनेजमेंट गुरू और वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ अर्थशास्त्री डा. विकास सिंह का कहना है इसकी तो पहले से ही उम्मीद थी। इससे पहले कुछ अन्य एजेंसियों ने रेटिंग में कमी की थी और उसके पीछे जरूर मजबूत वजह रही होगी। जाहिर है कि इसके बाद इसी तरह की आशंका सता रही थी। लेकिन अब आवश्यकता है कि सरकार एक Medium term fiscal consolidation roadmap बनाये। इससे बाजार को आत्मविश्वास मिलेगा। एफडीआई प्रवाह में हो सकती है कमी
विकास सिंह का कहना है कि Moody’s की रिपोर्ट के बाद भारत में एफडीआई के प्रवाह में कमी आ सकती है क्योंकि अधिकतर विदेशी निवेशक इन्हीं सब रेटिंग एजेंसियों की रिपोर्ट और रेटिंग को तवज्जो देते हैं। इससे ब्याज दर बढ़ने का भी खतरा है क्योंकि जबकि किसी देश की सोवरने रेटिंग खराब हो जाती है तो उसे आसानी से कर्ज देने को कोई भी तैयार नहीं रहता है। आर्थिक सुस्ती का भारी खतरा
Moody’s ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के सामने गंभीर आर्थिक सुस्ती का भारी खतरा है, जिसके कारण राजकोषीय लक्ष्य पर दबाव बढ़ रहा है। एजेंसी ने कहा है कि नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाले समय में निम्न आर्थिक वृद्धि, बिगड़ती वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र के दबाव जोखिम को कम करने की चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। सरकार की बढ़ सकती है परेशानी
Moody’s द्वारा भारत की रेटिंग घटाने का मतलब साफ है कि आर्थिक और वित्तीय तौर पर सरकार की परेशानी बढ़ने वाली है। ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले समय में नीति निर्माताओं और संस्थाओं को नीतियों को लागू करने में परेशानी हो सकती है। वैसे भी, किसी भी देश के नेगेटिव आउटलुक से यह पता चलता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय सिस्टम बुरे दौर से गुजर रही है, इससे आने वाले समय में राजकोषीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है।

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